
मंज़िल पर पहुंचने तक
खुद को अकेला ही पाता हूं
बीच राहों में
अकेले चलते, तन्हा भटकते
तेरे निशां पाता हूं
जाने क्यूं मैं सदा
अपने अस्तित्व को
तुझमें तलाशता हूं
जाने क्यूं तुझमें
अपना ही अक्स
मैं अक्सर ढूंढा करता हूं
पाता भी हूं
हां ! पाता भी हूं
खुद को
तुझ में
लेकिन
पाकर भी
तुझमें खुद को
मैं नहीं खुद को तुझमें पाता हूं...