Sunday, June 28, 2009

अब तो आओ बरखा रानी...

गर्मी से निकलती आह
दिल में बरसात की चाह
हर दिन एक आस
कि अब घिरें काली घटाएं
अपनी ठंडी बूंदों से
समस्त भूतल को भिगो जाएं
घनघोर घटा कुछ ऐसी छाए
बूढ़े, बच्चों और जवानों को भी
रिमझिम बारिश राहत दे जाए
किसानों की दुआओं में भी
है सिर्फ आजकल पानी
मानसून में आई देरी से
सरकार का भी निकल रहा है ‘पानी’
नीलगगन में ना आई ग़र बदली
संसद में छा जाएगी
विपक्ष करेगा पानी-पानी
सरकार फिर झल्लाएगी
कब बुझेगी धरती की प्यास
कब हरी होगी
मेरे आंगन की घास
सड़क पर पड़े हैं हाथ फैलाए
प्राण हैं निकलने को
त्राहि माम कर रहे
दो बूंद तेरी पाने को
कहीं फसल तो कहीं प्रेयसी
राह देखती प्रियतम की अपने
अब तो आओ बरखा रानी
बनाओ सुबह और शाम सुहानी...

Saturday, June 20, 2009

...दिल करता है

कुछ कहने को दिल करता है
बातें करने को दिल करता है
दिल की बात कब तक रखें दिल में
प्यार जताने को दिल करता है
तुम न मानो मर्ज़ी तुम्हारी
तुम्हारा ही ख्याल दिल में आता है
कुछ कहने को दिल करता है...
रात हो, दिन हो, हो सुबह या शाम
हर घड़ी तुम्हे सोचने को दिल करता है
बहुत बना लिए रेत के घरौंदे
दिल में आशियाँ बनाने को दिल करता है
दम निकलता है बहुत सितारों की छांव में
गेसुओं की छांव तले रहने को दिल करता है
कुछ कहने को दिल करता है ...
हार गए चंदा को तकते तकते
अब तुम्हे देखने को दिल करता है
छोड़ आओ दुनिया सारी, पास बैठो मेरे
बातें करने को दिल करता है
तुमसे मिलने को दिल करता है
कुछ कहने को दिल करता है...
मिलने को दिल करता है...

Thursday, June 18, 2009

जाते जाते...

हमने उन्हें रोका तो बहुत जाते-जाते...
वो रुके तो नहीं,
मगर अपनी याद छोड़ गए जाते जाते...
हाथों में हाथ लिए...
आंखों से ही ढेरों बातें करते...
बातों में होती थी नोंक झोंक भी,
फिर भी सदा मुस्कुराते रहते...
उनका मुड़ मुड़ कर देखना जाते जाते...
याद आता है बहुत,
उनका इठलाना जाते जाते...
प्यार था जो दिल में छुपा,
ज़ाहिर किया था हमने...
मगर वो दिल की बात को,
दिल ही में रखने का मशवरा दे गए जाते जाते...
कैसे कहें अब कैसे हैं हम...
शरीर मात्र ही रह गया है यहां.
आत्मा तो वही ले गए जाते जाते...