Monday, February 15, 2010


दो लफ़्ज़...
तुम्हारे वो दो लफ़्ज़…
समा गए हैं
इस दिल में,
इस दिल की धड़कनों में
गूंजते हैं कानों में
तुम्हारे वो दो लफ़्ज़...
तन्हा खोती ज़िन्दगी में
नए जीवन की तलाश हैं
हमसफर हैं
इस नए सफर में
तुम्हारे वो दो लफ़्ज़...
कब से तमन्ना थी
तुम्हारे होठों को
छूकर निकलें
चंद लफ़्ज़
मेरी ख़ातिर
उन लफ़्ज़ों में
पाया मैंने सारा जहां
बस अब कोई तमन्ना ना रही
समझो के हर हसरत दिल की पूरी हुई
मेरी ज़िंदगी में बहार लाए हैं
तुम्हारे वो दो लफ़्ज़
मेरी ज़िंदगी बन गए हैं
तुम्हारे वो दो लफ़्ज़
तुम्हारे वो दो लफ़्ज़