Wednesday, September 2, 2009

यूपीए के सौ दिन



पिछले महीने की 29 तारीख को यूपीए सरकार के सौ दिन पूरे हो गए। अपनी दूसरी पारी की शुरूआत में इस सरकार ने सौ सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी। इसकी रूपरेखा संसद में 5 जून के राष्ट्रपति के अभिभाषण में ही तैयार हो गई थी। एक बारगी उस वक्त लगा था कि जो काम यह सरकार पिछले पांच सालों में नहीं कर पाई उन्हें यह हड़बड़हट में सौ दिनों में भला कैसे निपटा सकती है। बहरहाल आज वह दिन भी आ गया जिसे उसके संकल्प की परीक्षा की घड़ी कहा जा सकता है।
यूं तो सरकारें और हमारे मंत्री लोग संकल्प वगैरह करते ही रहते हैं। संकल्प पूरे होना ना होना तो नियति की बात है। यहां यूपीए के सौ दिनों के संकल्पों में से कुछ एक का ज़िक्र करना बेमानी नहीं होगा। यूपीए सरकार ने आंतरिक सुरक्षा को लेकर किसी भी तरह की कोताही ना बरतने और साप्रदायिक सद्भाव को कायम रखने की प्रतिबद्धता जताई। साथ ही आर्थिक विकास दर को बढ़ाना तो खैर शुरू से ही कांग्रेस का एजेंडा रहा है। इस बार इसमें खास बात यह थी कि सरकार कृषि के क्षेत्र में वृद्धि देखना चाहती थी। मगर पहले भी मैंने इस बात का ज़िक्र किया था कि इन संकल्पों का पूरा होना ना होना तो विधाता के हाथ में है। अब इस बार विधि का विधान ही कुछ ऐसा हुआ कि मुल्क के 11 राज्यों के 278 ज़िलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया गया और यह सिलसिला अब भी थमा नहीं है। अब बेचारी सरकार इसमें क्या करे। उसने तो संकल्प जताया था लेकिन इंद्र देवता उसके संकल्प से खुश नहीं हुए। सच कहें! हमें तो सरकार की बेचारगी पर बड़ा ही तरस आता है।
तरस तो इस देश का गरीब किसान रहा है जो हर रोज़ एक नई उम्मीद के साथ आसमान की ओर ताकता है...बहरहाल हम बात कर रहे थे सौ सूत्री कार्यक्रम की। इसमें रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य को बढावा देने सहित ग्रामीण ढांचे व शहरों के नवीकरण के मौजूदा कार्यक्रमों को और मज़बूत करने, कौशल विकास और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात को शामिल किया गया था। इसके अलावा समाज के कमज़ोर वर्ग और अल्संख्यकों, वरिष्ठ नागरिकों के कलयाण, वित्तीय प्रबंधन, ऊर्जा सुरक्षा, राजकाज में सुधार संबंधी बातों के साथ पंचायतों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण और महिला आरक्षण विधेयक को पास करवाना यूपीए के सौ सूत्री एजेंडे में प्रमुख थे।
हालांकि इस दौरान सरकार ने कुछ एक काम कर डाले मसलन पंचायतों में महिलाओं को पचास फीसदी आरक्षण, विदेश व्यापार नीति को और अधिक उदार बनाना, 6-14 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा का अधिकार,
लेकिन सरकार मंहगाई पर लगाम लगाने में नाकामयाब रही, स्वाइन फ्लू के साथ इसका ऐसा फ्लो हुआ कि पिछले दिनों यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन पर फोकस नहीं कर पाई। बजट सत्र में भूमि अधिग्रहण विधेयक भी उसके अपने ही घटक दल तृणमूल कांग्रेस की आपत्ति के चलते पास नहीं हो पाया। बहुप्रतीक्षित महिला आरक्षण विधेयक एक बार फिर राजनीति की भेंट चढ़ गया। विदेश नीति के मोर्चे पर शर्म अल शेख के साझा बयान पर भी हमारे प्रधानमंत्री ने कोई वाहवाही नहीं बटोरी। उधर एसएम कृष्णा के पदभार संभालते ही ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हमले होने लगे।
हां भ्रष्टाचार जैसे मसलों पर प्रधानमंत्री की स्वीकारोक्ति और सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों को “बड़ी मछलियों” को पकड़ने की सलाह देना सकारात्मक पहल है। लेकिन इसमें भी माननीय प्रधानमंत्री भूल गए कि सीबीआई खुद उनके नियंत्रण में होने और बूटा सिंह भी उनके दायरे में होने के बावजूद आज तक बूटा सिंह को जांच के दायरे में नहीं लाया जा सका है। यानि कोरी बातों से कुछ नहीं होने वाला...परिवर्तन के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की ज़रुरत है जो अभी किसी भी राजनीतिक दल में दिखाई नहीं देती।

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