Monday, September 14, 2009

मेरे हमदम


मिल नहीं सकते कभी नदिया के दो तीर
लहरों को है मोहब्बत
साहिल से बहुत
मगर रह जाता है साहिल पर
उनके आंसुओं का नीर
डूबते सूरज की भी
जाने क्या है आरज़ू
आभास देता है समंदर से मिलन का
मगर अगले दिन
फिर वही जुस्तज़ू
उषा और निशा को भी है
तड़प बस मिलन की
एक आती भी है तो साथ लाती है अपने
घड़ी वही बिछुड़न की...
चार हैं दिशाएं जो तकती हैं एक दूजे को
हम ना मिल पाएं चाहे, नज़रें मिलती हैं
कह जाती हैं खामोश निगाहें
बहुत कुछ एक दूजे को...
दो कदम हैं जो साथ-साथ हैं पड़ते
हमकदम होकर भी हम,
हमदम कभी हो नहीं सकते...

13 comments:

  1. सुन्दर रचना.

    हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.

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  2. बहुत कुछ एक दूजे को...
    दो कदम हैं जो साथ-साथ हैं पड़ते
    हमकदम होकर भी हम,
    हमदम कभी हो नहीं सकते...

    BEHAD KHUBSOORAT ........BAHUT HI SUNDAR

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  3. सुंदर भाव .. अच्‍छी रचना !!

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  4. मित्र आपकी रचनाओं में हमेशा विरह का रस मिलता है। अत्यंत सुन्दर रचना।

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  5. और हाँ जरा श्रृंगार रस के दर्शन भी दे दिया कीजिये।

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  6. khooooooooooooooooooooooooob kaha acha h.

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  7. dil ki baat juban pr aagai dost....
    mai janta hoon ye tum kaun se nadiya ke teer ki baat kar rhe ho.. ha ha ha ha

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  8. चार हैं दिशाएं जो तकती हैं एक दूजे को
    हम ना मिल पाएं चाहे, नज़रें मिलती हैं
    कह जाती हैं खामोश निगाहें
    बहुत कुछ एक दूजे को...
    Apke ye shabd kavita k shishak ko aur zada mazbuti de rahe ha.....behad pyari kavita ha...dil ko chhuti hui...

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  9. काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर

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  10. दिल के सुंदर एहसास .............

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  11. बहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...

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  12. मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

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