Wednesday, September 16, 2009

पुस्तक मेला या बाज़ार



अगस्त के महीने की आखिरी तारीख थी। पिछली रात हुई बूंदाबांदी से उमस हो गई थी। पसीने में तर बतर प्रगति मैदान पहुंचा। टिकट के लिए लगी लंबी लाइन को देखकर एकबारगी थोड़ा परेशान हुआ लेकिन अगले ही पल थोड़ी तसल्ली भी हुई। यह किसी सिनेमा की टिकट खिड़की नहीं थी बल्कि यह लंबी लाइन 15वां पुस्तक मेला देखने आए लोगों की थी। तसल्ली इस बात की थी कि किताबों की खाक छानने वाले अब भी बहुत हैं। लेकिन अगले ही पल पता लगा कि एक ही खिड़की खुली है जिससे लाइन कुछ लंबी हो गई है।
अंदर जाने पर नज़ारा कुछ और ही था। पुस्तक मेले में स्टेशनरी मेला देखकर आंखें चौंधिया गई। एक तो हज़ारों की क़ीमत वाली कलम, पुराने ज़माने के दुर्लभ और बहुमूल्य संदेश पत्र और वो भई ख़ूबसूरत युवतियों के हाथों बिकते देख अपन तो गच्चा खा गए। टहलते टहलते हिंदी प्रकाशनों पर पहुंचे। घूमते हुए सोच रहा था कि इस बार लोग न जाने क्यों दिखाई नहीं पड़ रहे। कुछ एक प्रकाशकों से पूछने पर वो लगे कहने कि आग लगे इन आयोजकों को जो इस बार प्रवेश शुल्क भी दोगुना कर दिया। फिर मौसम का मिजाज़ भी कुछ ऐसा ही है लेकिन उन्होंने उम्मीद जताई कि ख़त्म होते होते लोगों की तादाद बढ़ जाएगी। हम भी दो चार किताबें खरीद के निकल लिए।
सौभाग्य से मेले के आखिरी दिन रविवार था और हमें एक बार फिर वहां जाने का मौका मिल गया। इस बार सब अप्रत्याशित था। खिड़की तकरीबन खाली ही थी। टिकट लेते हुए हमने अपने छोटे से संस्थान का परिचय देते हुए पूछ लिया कि इस बार लगभग कितने की टिकट बिक गई होंगी। आजकल टीवी ने लोगों को इतना जागरूक बना दिया है कि हर कोई पूछ बैठता है कैमरा है क्या? कैमरा हो तो बोलें। अब हम ठहरे कलमघसीट सो अपना सा मुंह लेकर चल दिए अंदर।
अंदर का नज़ारा आज उस दिन से ठीक उल्टा था। स्टेशनरी की चकाचौंध कायम थी बल्कि उसमें कुछ इजाफ़ा ही हुआ था। अंग्रेज़ी वाले लगाकर बैठे थे 25रूपये में हर किताब। छोटी सी जगह... तीन मेजों पर बिखरी किताबें...ठसासठस भरा स्टॉल...पता नहीं वहां 25 रूपये में कौनसा सुंदर साहित्य मिलता है जो अपने यहां हिंदी में दुर्लभ है। आगे एक ‘योग की दुकान’ थी जिसमें एक फोटो दिखाकर लोगों को जाने कैसे चंद मिनटों में आत्मिक शांति दिला रहे थे। अपनी समझ से से तो परे ही है।
बहरहाल हम फिर अपने हिंदी प्रकाशकों के पास पहुंचे। बीच में एक बड़ा बाज़ार नज़रों के सामने से गुज़रा। यहां बच्चों के लिए बहुत कुछ था। एक हॉल तो तकरीबन पूरा ही बच्चों की पठनीय सामग्री से भरा पड़ा था और सारी का सारी अंग्रेज़ी में। इसमें दूध पीते बच्चों की भी सृजनात्मकता बढ़ाने वाली चीज़ों से स्टॉल पटे पड़े थे। अब समझ यह नहीं आता कि बच्चों को 5 सब्ज़ियों और पक्षियों के नाम सिखाने के लिए लोग 250रू से भी ज़्यादा के बंद डब्बे क्यों खरीदते हैं। बहुत मुमकिन है कि उनके घरों में सब्ज़ियां आती ही ना हों। मगर फिर भी भीड़ खूब थी।
इधर अपने हिंदी के प्रकाशक बिल फाड़ने में थोड़े व्यस्त नज़र आए। लेकिन शिकायत उनकी भी थी कि बहुत कम नौजवान साहित्य खरीद रहे हैं। चौंकाने वाली बात तो यह थी कि नाम डायमंड हिंदी बुक्स के नाम में ही हिंदी थी। स्टॉल तो पूरा अंग्रेज़ीदां ही लग रहा था। अब यह त्रासदी जाने हिंदी की है या हिंदी प्रकाशकों की। इस पर अपने अपने मत हो सकते हैं।
सबसे अहम बात जो इस मेले की थीम के बारे में है। इस बार की थीम थी ‘उत्तर पूर्व का साहित्य’। यह और बात है कि इसको एक हॉल (हॉल नं.8) में केवल एक कोना ही नसीब हुआ। बाहर निकल कर एक ही बात दिमाग में चल रही थी कि पुस्तक मेला है कि बाज़ार ...

5 comments:

  1. आपकी सोच पूरी तरह पूर्वाग्रह से ग्रसित लगी। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि मेले का इतना बुरा हाल था। मैं हफ़्ते भर चले उस मेले में 4 दिन तो गई ही थी। भीड़ ठीक थी। हिन्दी किताबों के स्टॉल्स पर भी खरीददार मौजूद थे। जिनमें आधे युवा थे। बच्चों के लिए अंग्रेज़ी के साथ हिन्दी और इस बार तो ऊर्दू में भी पुस्तकें मौजूद थी। स्टेशनरी से आपकी ये चिढ़ समझ नहीं आई। जिसे किताबें खरीदनी थी वो तो खरीद ही रहा था जैसे कि आपने खरीदी।

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  2. सहमत हूँ भाई आपके बात से। मै भी रविवार को ही गया था, वहाँ अंग्रजी किताबो की भरमार थी।

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  3. मित्र आज तुमने वो लिखा जिसकी मुझे चाह थी। बहुत खूब। सच में यह एक बाजार ही था जहाँ हर तरफ बाजारवाद फैला दिख रहा था। कम युवाओं का हवाला देना कुछ अखर रहा है। शायद अधिकतर युवा ही मौज़ूद थे वहाँ।

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  4. good. is laikh ko aapne bade tasalli aur man se likha hai shayad.
    khas tor pr aapke laikhn shaili mujhe pasand aai hai.
    keep writin and best of luck ....

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  5. good. is laikh ko aapne bade tasalli aur man se likha hai shayad.
    khas tor pr aapke laikhn shaili mujhe pasand aai hai.
    keep writin and best of luck ....

    maine tumhere login id se hi kiya so sorry for that and keep writin

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