Monday, August 18, 2014

सहारनपुर दंगों की रिपोर्ट और मीडिया


सहारनपुर दंगों पर यूपी के मंत्री शिवपाल यादव की अध्यक्षता वाली जांच कमेटी की रिपोर्ट और मीडिया में उसके प्रसारण-प्रकाशन से उपजे कुछ यक्ष प्रश्न


- किसी भी जांच समिति की रिपोर्ट के तथ्यों को क्या कहा जाता है?
- क्या वह उस कमेटी की फाइडिंग्स नहीं होती हैं?
- जांच समिति के निष्कर्ष आरोप कैसे हो सकते हैं?
- उन्हें आरोप बता प्रकाशित करना कितना सही है?
- किसी मीडिया समूह का रिपोर्ट के तथ्यों को आरोप लिखना, क्या उसकी निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े नहीं करता?



ये सारे सवाल इसलिए खड़े हुए क्योंकि किसी भी अखबार और वेबसाइट ने शिवपाल कमेटी की रिपोर्ट की बातों को सीधे नहीं लिखा। किसी ने इन्हें 'आरोप' लिखा तो किसी ने 'भाजपा की भूमिका पर सवाल'। कंटेंट के मामले में वेबसाइट्स की विश्वसनीयता अभी अखबारों की तुलना में न के बराबर है। इसलिए जब हिंदी और अंग्रेजी के तमाम शीर्ष अखबारों की वेबसाइट्स ने ऐसा लिखा तो लगा कि अखबार कुछ बदलेंगे, पर अखबारों ने भी यही किया। इंडियन एक्सप्रेस तक ने शीर्षक में 'ब्लेम' शब्द का इस्तेमाल किया। माना कि कमेटी प्रतिद्वंद्वी दल के नेता की अध्यक्षता में बनाई गई थी, पर उसकी रिपोर्ट आरोप कैसे बन गई।
कोई मुझे इस दुविधा से निकलने में मदद करेगा? मेरा मानना है कि खबर की पैडिंग में दूसरी बातें हो सकती थीं।

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